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ना जाने क्यों मैं लिख रहा हूँ

इन कोरे से पन्नो पर अपनी जिंदगी लिख रहा हूँ । समझ नहीं आता क्यों लिख रहा हूँ , न समझी में मुझसे हुई बहुत है गलतियां , उन्हें सबसे माफ़ी मांग हूँ, ना जाने क्यों मैं लिख रहा हूँ । कुछ पुरानी जिंदगी में जख्म मिले थे , उन्हें वापस ताजा जख्म बनाने जा रहा हूँ , न जाने कुछ क्यों मैं लिख रहा हूँ । मेरी गलती क्या थी कि सबको अपना मानना , अगर किसी को अपना मानना गलती है , तो क्यों हम सब ईश्वर को अपना मानते हैं , क्या नहीं है ये गलती,क्या नही है ये गुनाह , तो क्यों ये गलती मैं बार-बार कर रहा हूँ , न जाने क्यों मैं लिख रहा हूँ माफ़ कर सकें तो माफ़ कर दीजियेगा मुझे , क्योंकि ये खता मैं हर बार करूँगा और अपनी ज़िंदगी को अपनों के सामने रखूंगा , न जाने क्यों मैं लिख रहा हूँ । न जाने क्यों मैं लिख रहा हूँ ।।

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